ऊर्जा प्रदेश में ऊर्जा संकट लेकिन इस बार जनता का विरोध नहीं पढ़िए नेशनल न्यूज कॉज की ये रपट
भाजपा सरकार, देश के प्रधानमंत्री और राज्य सरकार हर घर तक बिजली पहुंचाने का दावा भले ही करें लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और ही है.
उत्तराखंड में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को भारी बहुमत मिला है और इससे पहले भी भाजपा ही सरकार में थी. जनता ने काफी आशा के साथ दुबारा पुष्कर धामी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन अब लगता है 6 से 10 घंटे बिजली का नदारद रहना जनता को भारी पड़ने वाला है.
हमने उत्तराखंड के एक बड़े शहर हल्द्वानी और उसके आसपास बिजली की उपलब्धता पर 1 जून से 9 जून 2022 तक एक सर्वे किया यहां प्रतिदिन औसत 7 से 8 घंटे बिजली गुल रहती है.
क्या इसको लेकर कोई सवाल जनता नहीं कर रही है? "भाजपा सरकार में ना तो हम आंदोलन कर सकते हैं ना ही सरकार के फैसलों को चुनौती दे सकते हैं, भाजपा विरोधियों को लेकर काफी सख्त रुख रखती है". ये कहना है हल्द्वानी के एक निवासी का.
क्या इस बिजली की हील हुज्जत के पीछे कोई कहानी है? जब हमने उत्तराखंड पावर कारपोरेशन के स्थानीय अधिकारियों से इस बाबत बात करने का प्रयास किया तो सभी का एक ही जवाब था हम कोशिश करते हैं लेकिन लोड काफी है ऐसे में सुचारू व्यवस्था कर पाना मुश्किल है इसका क्या मतलब निकाला जाए? क्या बिना इंफ्रास्ट्रक्चर को बदले हम इस व्यवस्था को सुधार सकते हैं. उत्तराखंड को भाजपा ऊर्जा प्रदेश के रूप में प्रचारित करती है लेकिन यहां ऊर्जा का सबसे बड़ा संकट दिख रहा है.
जब हमने अपनी पड़ताल को और आगे बढ़ाया तो एक बात सामने आई की बिजली की इस कुव्यवस्था का सबसे ज्यादा लाभ इन्वर्टर बेचने वालों को हो रहा है. बिना इन्वर्टर यहां गुजारा संभव ही नहीं है. क्या इन्वर्टर माफिया जैसी कोई संस्था भी इस अनियमित बिजली कटौती के लिए जिम्मेदार है इससे मना भी नहीं किया जा सकता है. जिस तेजी से इन्वर्टर का बिजनेस फल फूल रहा है उसे देखते तो यही लगता है इसका कुछ रोल जरूर है.
(नेशनल न्यूज कॉज उत्तराखंड ब्यूरो)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें